सोमवार, 6 मई 2024

धन संपत्ति का कोंग्रेसी पुनर्वितरण एवं विरासत टैक्स

 

 

"धन संपत्ति का कोंग्रेसी पुनर्वितरण एवं विरासत टैक्स"




इन दिनों भारतीय राजनीति के चुनावी वर्ष 2024 मे हर व्यक्ति की संपत्ति का एक्सरे कर संपत्ति, धन और स्वर्णाभूषणों का पुनर्वितरण जैसी क्रांतकारी कदम और  "विरासत टैक्स" जैसे मुद्दों  की चर्चा ज़ोरों पर है। 7 अप्रैल 2024 को कॉंग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी ने हैदराबाद की एक चुनावी रैली मे देश की संपत्ति और धन के पुनर्वितरण हेतु अपनी नीति और नियत को स्पष्ट करते हुए कहा कि:-

"सत्ता मे आने पर "हम  देश का एक्सरे कर देंगे, दूध का दूध, पानी का पानी हो जायेगा", "अल्पसंख्यकों को पता चल जायेगा की इस देश मे उनकी भागीदारी कितनी है"। "उसके बाद हम देश का फ़ाइनेंशियल और इंस्टीट्यूटशनल सर्वे करेंगे"। "ये पता लगायेंगे कि हिंदुस्तान का धन किसके हाथ मे है"। "इस ऐतिहासिक कदम के बाद के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे"!! "जो आपका हक बनता है वो आपके लिए आपको देने का काम करेंगे।"

राहुल गांधी के इस ब्यान के बाद विवाद तो होना ही था। क्या एक वर्ग के लोगो से संपत्ति को छीन कर दूसरे वर्ग को देने की नीति से समाज मे अशांति, उग्रता और विक्षोभ नहीं फैलायेगी? खुद प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं मे कॉंग्रेस की इस "माओवादी" सोच के विरुद्ध देश के लोगो को आगाह किया। मोदी ने  राहुल गांधी की एक्सरे वाली इस सोच को विस्तृत व्याख्या करते हुए कॉंग्रेस द्वारा लोगों के घर, कृषि भूमि, बैंक जमा, स्वर्ण आभूषणों के साथ महिलाओं के स्त्रीधन और मंगल सूत्र तक पर काँग्रेस की गिद्ध दृष्टि के विरुद्ध सचेत किया। क्या कॉंग्रेस की इस तरह की सोच से देश के आर्थिक विकास के दृष्टिकोण को हतोत्साहित करने को बल नहीं मिलेगा? क्या राहुल गांधी की इस तरह की माओबादी सोच से लोगों मे अकर्मण्यता, निष्क्रियता,  आलसी और अलालीपन की मानसिकता  को बढ़ावा नहीं मिलेगा? एक ओर, जब बगैर कुछ किये ही लोगो को दूसरों की संपत्ति मे हिस्सा मिलेगा तो वे क्यों कर नौकरी, सेवा, व्यापार, कृषि या   औध्योगिक उत्पादन  के लिये श्रम करेंगे, वहीं दूसरी ओर उध्योग्पति और पूंजीपति क्यों कर व्यापार या उध्योग मे अपने धन और पूंजी को निवेशित करेंगे? जबकि उनकी उनकी आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा संपत्ति के पुनर्वितरण या टैक्स के रूप मे सरकार ले लेगी? इस मार्क्सवादी और लेनिन वादी सोच ने ही रूस सहित सोवियत संघ और विश्व का बड़ा अहित किया।                 

भाजपा ने कॉंग्रेस पर  विरासत टैक्स  की संकल्पना को अपना  चुनावी एजेंडा के तौर पर  अपनाने का आरोप लगाया हैं। चुनावी फायदे के लिये विरासत टैक्स का ये  सगूफ़ा  इसलिये छोड़ा गया क्योंकि कॉंग्रेस और गांधी परिवार के 82 वर्षीय कुलगुरु और इंडियन ओवरसीज कॉंग्रेस के चेयरमेन, सेम पित्रोदा (सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा) ने 26 अप्रैल को अमेरिका मे विरासत टैक्स की तर्ज़ पर  ये विचार प्रकट किये  कि अमेरिका सहित अन्य देशों मे लगने वाले विरासत टैक्स को भारत मे भी लागू किया जाय, जिससे सरकार को एक बड़ी धनराशि टैक्स के रूप मे प्राप्त होगी, पर कॉंग्रेस ने तुरंत ही सेम पित्रोदा के "विरासत टैक्स" वाले  विचार से अपने आपको अलग करते हुए, विरासत टैक्स को सेम पित्रोदा का अपना निजी विचार बतला कर, उनसे अपना पल्ला झाड़ते हुए बचने का प्रयास किया।

विरासत  टैक्स के तहत आप या आपके पूर्वजों द्वारा जो संपत्ति या धन आपको प्राप्त हुआ या जो जायदाद या धन आप अपनी संतानों के लिये छोड़ जायेंगे उसमे 45% ही आपको या आपकी संतानों को प्राप्त होगा शेष 55% धन विरासत टैक्स के रूप मे आप से छीन लिया जायेगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं मे ये भी आरोप लगाया कि 1953 से  जारी इस विरासत टैक्स को तत्कालीन कॉंग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री स्व॰ राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल मे सन 1985 मे सिर्फ  इसलिये समाप्त किया था क्योंकि वे अपनी माँ स्व॰ श्रीमती इन्दिरा गांधी से विरासत मे मिले धन,  संपत्ति और स्वर्ण आभूषणों पर लगने वाले टैक्स को देने से  बचना चाहते थे!! उन दिनों विरासत टैक्स की दर 85% थी।  सवाल उठना लाज़मी हैं कि श्री राजीव गांधी द्वारा 1985 मे इस विरासत टैक्स को बापस लेने के पूर्व 1953 से जिन लोगों से विरासत टैक्स की बसूली की गयी क्या उनके साथ अन्याय नहीं हुआ? और जब 1985 मे इस विरासत टैक्स को समाप्त किया जा चुका है तो आज काँग्रेस के राजर्षि सेम पित्रोदा से प्रभावित  राहुल गांधी, संपत्ति के पुनर्वितरण को अपने चुनावी घोषणा पत्र 2024 मे  इस टैक्स को शुरू करने क्या आवश्यकता हो आयी?

ये बात सही है कि संपत्ति और धन के पुनर्वितरण नीति का काँग्रेस के घोषणा पत्र मे उल्लेख नहीं हैं इसिलिये काँग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे, जय राम रमेश सहित सारे काँग्रेस दल के नेता मोदी को झूठा बताते हुए चुनौती दे रहे कि वह बताएं कि काँग्रेस के घोषणा पत्र मे इसका उल्लेख कहाँ किया गया हैं? लेकिन ये बात भी उतनी ही सही हैं कि काँग्रेस के लोग बताएं कि मोदी ने कब 15 लाख रुपए देश के हर नागरिक को देने का वादा कब किया? या भाजपा द्वारा 400 सीटें लाने पर संविधान बदलने, आरक्षण समाप्त करने का कहाँ उल्लेख किया? कहावत हैं कि प्यार और युद्ध मे सब जायज हैं!! भाजपा को संविधान मे परिवर्तन करना होता तो अपने पिछले दो कार्यकाल मे भी ऐसा कर सकती थी? और जो संविधान संशोधन  हुए वे सारे निजी स्वार्थ से परे देश हित  मे लिये गये थे जिनमे अन्य दलों का सहयोग था फिर वो चाहे धारा 370 का समाप्त करना हो या लोक सभा और विधान सभाओं मे आरक्षण को पुनः दस वर्ष के बढ़ाना, वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लागू करना, या लेह लद्दाख को केंद्र शासित करने की घोषणा जैसी मुख्य मुद्दे शामिल है। इसके विपरीत कॉंग्रेस ने कर्नाटक मे पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के आरक्षण कोटे मे 4 प्रतिशत की कटौती कर ये कोटा मुस्लिमों के  लिये आरक्षित कर धर्म के आधार पर आरक्षण की शुरुआत की है जो संविधान की मूल भावना के विपरीत है। अब देश के नागरिकों को समझना होगा कि देश के संविधान के स्वरूप और भावना से कौन खिलवाड़ कर रहा है?   

जिस तरह कॉंग्रेस ने विरासत टैक्स पर सेम पित्रोडा के विचार से अपने आपको अलग कर लिया, क्या उसी तरह काँग्रेस मे हिम्मत हैं कि राहुल गांधी के संपत्ति और धन को अल्पसंख्यकों को वितरित करने के विचार से अपने आपको अलग कर सके? कदापि नहीं!! क्योंकि राहुल गांधी की  घोषणा ही कॉंग्रेस मे सर्वोच्च घोषणा होती है, जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता!! जो राहुल गांधी कहेंगे वही कॉंग्रेस के लिये ब्रह्मवाक्य होगा! फिर उसका उल्लेख कॉंग्रेस के घोषणा पत्र मे हो या न हो!! सवाल ये उठता है कि यदि कॉंग्रेस सत्ता मे आयी तब  राहुल गांधी की सोच और विचार के अनुसार एक वर्ग से एकत्रित संपत्ति और धन के बंटवारे का आधार क्या  होगा? महात्मा गांधी की मनसा के विरुद्ध  जिस कॉंग्रेस ने अपने स्वार्थ के लिये देश का बंटवारा स्वीकार कर लिया उससे एकत्रित धन के न्याय पूर्वक  बँटवारे की उम्मीद कैसे की जा सकती है?  जो एक विचारणीय प्रश्न है।

विजय सहगल

शुक्रवार, 3 मई 2024

भाग्यनगर गऊ सेवा सदन (गौशाला), हैदराबाद

 

"भाग्यनगर गऊ सेवा सदन (गौशाला), हैदराबाद"









18 जनवरी 2024 को हमारे जॉयफुल जंक्शन, हैदराबाद के कुछ साथी पिछले कई दिनों  से गऊ शाला जाने के कार्यक्रम बना रहे थे। कार्यक्रम के स्थान और प्रयोजन से एकदम अनिभिज्ञ मैने इसलिये अपने  मित्रों के साथ चलने  की सहमति दे दी क्योंकि मुझे उनके उपर अटूट विश्वास था कि वे जिस भी स्थान और आशय हेतु जाएंगे सार्थक ही होगा। हमारे लक्ष्य तक जाने का माध्यम बने रथ के सारथी श्री गणेश सुब्रह्मण्यम जो अपनी रथ रूपी नयी नवेली मारुति बोलेनों मे हम चार  सह यात्रियों सहित यात्रा करा  रहे थे। गऊशाला की पिछले दिनों आपस मे चर्चा तो हो रही थी पर मै गऊ शाला को कोई क्षेत्र विशेष समझ रहा था, जिसकी कल्पना मै कोई आश्रम या धार्मिक स्थल के रूप मे कर रहा था। लगभग 40-45 मिनिट की यात्रा पश्चात जब हम एक छह   मंज़िला भवन के सामने उतरे, तब तक भी मेरे दिमाग मे उद्देश्य और स्थान अस्पष्ट था। बहु मंज़िला भवन को देख मुझे लगा शायद किसी गणमान्य व्यक्ति या साधू, महात्मा जो  इस भवन मे ठहरे होंगे उनसे मिलने के उद्देश्य से जा रहे हैं। भवन के प्रवेश द्वार के बाहर कुछ फल, सब्जी और हरी भाजी की दुकान को देख लगा शायद योगाश्रम हो,  योगासन पश्चात लोग  सलाद, फल आदि ग्रहण करते होंगे। गाड़ी पार्किंग के पश्चात मै अपनी मित्र मंडली जिसमे हैदराबाद के मेरे अभिन्नतम मित्र नारायण राव जी, सत्य प्रकाश जी, जंग बहादुर और गणेश सुब्रह्मण्यम के साथ अनमने मन से मै भी, पीछे पीछे चलने लगा। बहुमंज़िले भवन मे प्रवेश करते ही गायों, बैलों और बछड़ो के रंभाने की आवाज सुनाई दी, ऐसा लगा शायद गाँव के ग्वाले गऊओं  के झुंड को हार मे चरनोई की जमीन पर उन्हे चराने के लिये गाँव की पगडंडी से होकर जा रहे हों।

मुझे देख कर हैरानी हुई की 30-40 गायों के समूह को पक्के बाढ़े मे रक्खा गया था। चार मंज़िला भवन की हर मंजिल पर ऐसे 6-7 बाढ़े थे। हर मंजिल पर बाढ़ों के सामने खुला बरामदा था जहां घास के बड़े बड़े ढेर लगे हुए थे। मैंने जीवन मे पहली वार इस तरह की छह मंज़िला  गऊ शाला देखी थी। सहसा विश्वास नहीं हुआ कि महानगरों की इस आपा-धापी और  भागम-भाग वाली ज़िंदगी मे गायों के लिये भी लोग इतनी श्रद्धा, भक्ति और सम्मान  के साथ बगैर किसी प्रतिलाभ की अपेक्षा और  निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं? गाँव, कस्बों और मध्यम श्रेणी के शहरों मे तो पूरे देश मे सनातन धर्मी हर व्यक्ति परिवार मे गऊ सेवा के ऐसी सांस्कृति और संस्कार हर जगह देखने को मिल जाते है पर महानगरों की इस सांस्कृति को देख मन आश्चर्य से प्रसन्न हो उठा।

अब तो गऊ शाला की इस परियोजना के वारे मे अधिक जानकारी की जिज्ञासा से मैंने गहराई और गौर से कदम-कदम की सूचना एकत्रित की। पहली ही मंजिल पर एक बड़ी तराजू देख ज्ञात हुआ कि हैदराबाद के अनेक हिन्दू धर्मावलम्बी अपने बच्चों, या अपने परिवार के सदस्यों के जन्मदिन पर गऊ शाला मे आकार घास, गुड, रोटी या अन्य फल फ्रूट आदि अपनी श्रद्धा और क्षमता अनुसार दान कर गायों को चारा आदि खिलाते हैं। लाइनेस क्लब और ऐसी अनेक संस्थाएं भी इस गौशाला मे अपने अपने तरीके से योगदान करती हैं।  कुछ लोग अपने बजन के बराबर चारा, आटा चुन्नी आदि दान करते हैं। घास चारे, गुड, आटे की व्यवस्था गऊ शाला प्रबंधन द्वारा की जाती है। बैसे तो हर दिन आने वाले सैकड़ों श्रद्धालु और गऊ सेवक यहाँ के हर काम मे हिस्सा बँटाते हैं लेकिन गौशाला प्रबंधन ने भी 8-10 स्थायी सेवक गायों की सेवा के लिये रक्खे है जो नित्य हर बाढ़े की सफाई, धुलाई करते हैं। गायों के गोबर की सफाई हेतु गायों को एक बाढ़े से दूसरे बाढ़े मे स्थानांतरित किया जाता हैं। इस दौरान गौमूत्र और गोबर को विधि पूर्वक शुद्ध और सात्विक ढंग से एकत्रित कर खाद और औषधि के रूप मे भी इस्तेमाल किया जाता हैं। गौशाला मे गायों की देखभाल के लिये एक पशुचिकित्सक भी नियुक्त है जो समय समय पर गायों की देखभाल और उनके स्वास्थ्य का परीक्षण करता हैं। एक गुजरती सज्जन जो हर रोज दस  हजार रोटियाँ बनवा कर गौशाला मे आते है और तीनों मंजिलों पर गौधन को रोटी खिला कर गऊ सेवा करते हैं। उन सज्जन ने छोटे छोटे पैकेटों मे पैक की गयी ताज़ा रोटी के पैकेटों को हमारे मित्रों के माध्यम से भी आगे   गायों को खिलाने के लिये दिया। हमारे मित्रों ने भी अपनी श्रद्धा अनुसार गायों के चारे और गुड़ को क्र्य कर गायों को खिलाया। गौशाला मे ये आवश्यक नहीं था कि आप घास या चारे को क्रय कर ही खिलाएँ। हर मंजिल पर दान दाताओं द्वारा रक्खे बड़े-बड़े घास के गट्ठर से भी आप घास लेकर, गायों को खिला सकते है।

दूसरी मंजिल पर गायों के सुंदर छोटे-छोटे बछड़ों को बाढ़े के बाहर खुला छोड़ा गया था ताकि वे नरम-नरम घास को खा सके और बाढ़े मे गायों के झुंड से सुरक्षित रह सके। लोगो को दुलार इन सुंदर बछड़ों की ओर सहज ही चला जाता था और श्रद्धालु उन्हे  प्यार और दुलार कर अपने हाथों से घास, रोटी या गुड खिला रहे थे। लगभग एक हजार गायों की व्यवस्था इस गौशाला मे की गयी हैं। प्रथम मंजिल पर गौशाला के साथ ही कार्यालय और महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण भी किया गया हैं वाकि दो अन्य मंजिलों पर भी गायों को बाढ़े मे रक्खा गया था। वही उपर की पाँचवी और छटी मंजिल पर शादी-विवाह या अन्य सामाजिक और  धार्मिक कार्यक्रमों हेतु बड़े बड़े हाल भी बनवाएँ गायें हैं जहां पर निर्धारित शुल्क के साथ लोग विवाह आदि के कार्यक्रम संपादित करते हुए गऊ शाला को अप्रत्यक्ष रूप से शुल्क के रूप रख रखाव हेतु आर्थिक सहयोग  करते है। उपर की मंजिलों पर जाने के दो लिफ्ट की व्यवस्था भी हैं। एक जो अच्छी बात थी पहली मंजिल से छठी मंजिल तक जाने आने के लिये सीढ़ियों की जगह काफी चौड़ा ढलान वाला  रैम्प बनाया गया था ताकि गायों को दूसरी और तीसरी मंजिल तक लाने, लेजाने मे परेशानी न हो।  हम लोगो ने गऊ शाला की सारी मंजिलों पर भ्रमण कर गौशाला का निरीक्षण किया। ऊपरी मंजिल से कुछ दूरी पर हुसैन सागर झील के विहंगम दृश्य भी दिखलाई देता हैं। कुछ बाढ़ों के बाहर दान दाताओं द्वारा कल्याण के लिये बनवाएँ गये इस निर्माण की निश्चित ही प्रशंसा   की जानी चाहिये। इस महानगर मे इस तरह की गऊ शाला के लिये इस धार्मिक और सामाजिक परियोजना की इस पहल की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम हैं। सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ पुराणों की ऐसी मान्यता हैं कि गायों मे 33 कोटि देवता निवास करते हैं। हिन्दू धर्म की मान्यता अनुसार जहां गायों की सेवा से सुख, शांति और संपन्नता रूपी ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त होता है।  यदि आप भी  हैदराबाद भ्रमण पर जाये तो हुसैन सागर झील से चंद कदमों की दूरी  पर लोअर टैंक रोड पर स्थित इस गऊ शाला का भ्रमण अवश्य करें और गायों को चारा, घास रोटी आदि खिलाकर धर्मलाभ अर्जित करें।

विजय सहगल

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

मित्र अश्वनी मिश्रा की सेवानिवृत्ति

 

"मित्र अश्वनी मिश्रा की सेवानिवृत्ति"







आज 30 अप्रैल 2024 को हमारे छोटे भाई तुल्य और अभिन्न मित्र अश्वनी मिश्रा जी की सेवानिवृत्ति है। 39  साल 4 माह  की निष्कलंक सेवा के बाद बैंक से रिटायर होना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं हैं। 1984 मे स्थानांतरण से  ग्वालियर पहुँचने पर मिश्रा जी का नाम सुन तो  रक्खा था, क्योंकि मिश्रा जी नजदीक ही मुरैना शाखा मे पदस्थ थे, लेकिन उनसे मुलाक़ात और निकटता 1992 मे मेरी पदस्थपना पोरसा जिला मुरैना शाखा के दौरान हुई। चूंकि पोरसा एक नॉन-फ़ैमिली स्टेशन था तो हर शनिवार और सोमवार या कभी बीच मे 45 किमी दूर मुरैना आना जाना बना रहता था। मुख्यालय मुरैना होने के कारण कई बार बैंक के काम से आना जाना जो लगा रहता, जहां उनसे मुरैना शाखा मे लगातार संपर्क बना रहा।   

मिश्रा जी कद-काठी मे बेशक हैं तो, छोटे, पर उनकी मेधा, स्वाभिमान और बुद्धिकौशल  की तुलना  आसमान की ऊंचाई से करें तो अतिसन्योक्ति न होगी। हमे याद हैं मिश्रा जी ने उन दिनों बैंक की परीक्षा सीएएआईआईबी के दोनों भाग पास कर लिए थे इसलिए वे विशेष सहायक से अधिकारी वर्ग की प्रोन्नति के लिये पात्र हो गये थे और वरिष्ठता सूची मे प्रथम नंबर पर थे। बैंक स्टाफ सीएएआईआईबी परीक्षा के महत्व  से भली-भाँति परिचित होंगे कि ये एक काफी महत्वपूर्ण लेकिन कठिन परीक्षा है, जिसे एक स्वतंत्र संस्था अखिल भारतीय स्तर पर हर छह माह मे आयोजित करती हैं। इस परीक्षा के दोनों भाग पास करने पर जहां तीन वेतन वृद्धियाँ तो मिलती ही हैं साथ मे राज्य स्तरीय वरिष्ठता सूची मे भी तीन साल की वरीयता भी  वरिष्ठता सूची  मिलती हैं। इस परीक्षा से ने केवल आर्थिक लाभ अपितु बैंक की प्रोन्नति मे भी फायदा मिलता हैं। लेकिन दुर्भाग्य कि  उन दिनों मिश्रा जी की योग्यता, ज्ञान और बुद्धि कौशल बैंक  प्रबंधन और यूनियन की  ओच्छी राजनीति और संकुचित और षड्यंत्रकारी  मानसिकता के चलते तत्कालीन ओरिएंटल बैंक प्रादेशिक प्रबंधन, भोपाल और राज्य स्तरीय बैंक अधिकारी  यूनियन, जिनसे   बैंक के स्टाफ  के हितों के लिये उनके पक्ष मे खड़े होने और उनके हितों की रक्षा की अपेक्षा थी, षड्यंत्र पूर्वक मिश्रा जी की वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ कर अपने चहेते, एक ऐसे भ्रष्ट और बेईमान कर्मचारी की प्रोन्नति कराने मे सफल हुए जिसको कालांतर मे  भ्रष्टाचार  और बैंक फ़्रौड  मे संलिप्त होने के कारण बैंक की सेवाओं से बर्खास्त किया गया। इस अन्याय से मिश्रा जी थोड़े निराश तो जरूर हुए पर  हौसले, श्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविता की तरह बुलंद रहे कि:-   

हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठनूँगा,

काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ। गीत नया गाता हूँ॥ 

यहाँ ये बताना आवश्यक है मिश्रा जी भी कविता लेखन मे पारंगत हैं। बैंक की सेवा के पूर्व भी मिश्रा जी का विध्यार्थी जीवन भी संघर्ष और कठिनाइयों भरा रहा। उच्च शिक्षा के लिये अपने गाँव से बाहर यूपी के कालपी मे अध्यवसाय हेतु जाना पड़ा, जहां एक आश्रम के एक कमरे मे रहकर इंटर्मीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक कमरे मे पारीक्षा की तैयारी करना कोई अजूबा नहीं था, अनूठापन तो था, पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ, रोज उदरपोषण  हेतु लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाना, जो समान्यतः हम-आप जैसे छात्रों को   विध्यार्थि जीवन मे नहीं करना पड़ा होगा।

सन 2000 से 2010 के दौरान मुझे मिश्रा जी के साथ तत्कालीन ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शाखा नया बाज़ार, थाटीपुर और डबरा शाखा मे कार्य करने का मौका मिला। डबरा शाखा मे मिश्रा जी को बैंक के कार्य मे उनकी लगन, समर्पण, निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करने का  मैं हमेशा कायल रहा। सामान्यतः वे अपने कार्य को बड़ी मेहनत और परिश्रम से संपादित करते लेकिन डबरा शाखा मे प्रबन्धक के रूप पदस्थपना के दौरान मैंने उनको हमेशा अपने समकक्ष साथी के रूप सम्मान दिया। कदाचित ही कभी उनके रहते, मैने  बैंक के दिन-प्रतिदिन के कार्यो मे हिस्सेदारी की हो इस कारण मै, सदैव बैंक के व्यव्यसाय के विकास मे ज्यादा से ज्यादा समय दे सका।

मुझे अच्छी तरह याद है उन दिनों बैंको  मे ट्रैक्टर ऋण मे डीलर से  मिलने वाले कमीशन के कारण ट्रैक्टर ऋण,  काफी संख्या मे गैर निष्पादन कारी हो रहे थे, जिसके कारण बैंक के ऋण खाते काफी संख्या मे खराब हो रहे थे।  इसको नियंत्रित करने के लिये हम लोगो ने उन दिनों डबरा क्षेत्र मे धान और गेहूं के व्यापारियों को वेयर हाउस रसीदों के विरुद्ध सर्वाधिक ऋण वितरण किया था। कृषि अधोसंरचना के विकास हेतु वेयर हाउस के निर्माण मे भी हमारे बैंक शाखा की हिस्सेदारी अच्छी-ख़ासी रही जिसमे हितग्राही को लाखों रुपए का अनुदान भी शामिल था। काजल की कोठरी मे रहने के बावजूद कदाचित, एक पैसे के आर्थिक कदाचार का, कभी कोई वृतांत हमारी शाखा के  बारे मे कभी देखा या सुना गया हो। यही कारण है जब मैंने मिश्रा जी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट मे उन्हे शत प्रतिशत नंबर दिये तो प्रादेशिक कार्यालय के एक अधिकारी ने इस पर सवाल खड़े किये? मैंने उन्हे स्पष्ट रूप से कहा कि मिश्रा जी की निष्ठा और ईमानदारी के लिये यदि  सौ मे सौ नंबर की मजबूरी न होती तो मैं उनको सौ से भी अधिक नंबर देता। मैं इन्हे अपने से ज्यादा योग्य, बुद्धिमान, सच्चा, ईमानदार और पवित्र मानता हूँ।

हम दोनों के बैंकिंग से परे बड़े घनिष्ठ परवारिक संबंध भी रहे। इनके दोनों बेटे कार्तिकेय और ज्योतिर्मय से हमारे बच्चों की प्रगाढता हम दोनों की आत्मीयता और निकटता से कम नहीं हैं। मिश्रा जी को याद हो न हो पर हमे उनके परिवार, वीके गुप्ता जी के परिवार और हमारे परिवार  के साथ अंडमान और निकोबार की यात्रा के सुखद, सुनहरी यादें अब तक याद हैं। विशेषकर जोलीबॉय दीप से पोर्ट ब्लेयर की स्टीमर से बापसी के दौरान घनघोर बारिश के बीच,   मछलियों और डीजल इंजिन के धुएँ की बदबू  के कारण  एक को उल्टी करते देख, दूसरे और दूसरे को उल्टी करते देखने के  दौरान तीसरे को, देखा देखि, जी घबड़ाने और   उल्टी दर उल्टी करने वालों की लाइन लगने की घटना तो भुलाए नहीं भूलती।                                           

मुझे याद है कि एक खराब हाउसिंग लोन खाते को रेगुलर कराने के लिये मिश्रा जी हमसे ज्यादा चिंतित और परेशान रहते थे जबकि उनका उस ऋण से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं था। लेकिन एक भाई और अभिन्न मित्र होने के चलते उन्होने हमेशा हमारी परेशानी या दुःखों मे अपनी सहभागिता प्रकट की। हमे याद है जब हम दोनों की डबरा पदस्थपना हुई तो तत्कालीन ऋण अधिकारी श्री संतवानी ने हम दोनों  को न्यायालय के कर्मचारियों से व्यक्तिगत ऋण खाते मे बसूली के दौरान एक बहुत ही  अप्रिय अनुभव से गुजरने के कारण, इन बैंक ऋण खातों मे बसूली की  चुनौती दी थी। उक्त ऋण खातों मे किश्तें न आने के कारण खाते, गैर निष्पादन कारी हो गये थे। न्यायालय के कर्मचारियों द्वारा दिये गये किश्तों की अदायगी के चैक जैसे ही बिना भुगतान के बापस आए, हम लोगो ने सेक्शन 138 के तहत न्यायालय मे केस दायर कर दिये। माननीय न्यायाधीश को इस बात की जानकारी हुई तो मज़ाक मे मुझ से सवाल किया,  उनकी ही अदालत मे उनके ही कर्मचारियों के विरुद्ध मुकदमा!! मैंने कहा श्रीमान हम लोग तो नौकर ठहरे, आप जो आदेश दें, हमे तो उसकी पालना करनी है? उन्होने कर्मचारियों को सख्त आदेश दिये कि बैंक ऋण जमा करें अन्यथा उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही होगी। उक्त तीनों ऋण समझौते के आधार पर समाप्त हो गए। ऐसे डूबंत ऋण खातों मे  मिश्रा जी ने बड़ी चतुराई से बैंक के खराब ऋण मे बसूली की थी।   

मेरा ये दृढ़ विश्वास है के बैंक के सतर्कता विभाग मे पदस्थपना भी एक सम्मान का विषय है, जो बैंक के विरले, कर्मठ, मेहनती और ईमानदार अधिकारियों को ही प्राप्त होता है, फिर वह चाहे ओरिएंटल बैंक हो या पंजाब नेशनल बैंक!! यही कारण हैं कि उनके मृद व्यवहार के कारण उनके प्रशंसकों और मित्रों की एक लंबी सूची हैं जिसमे ग्वालियर, मुरैना के अनेकों गणमान्य व्यक्ति शामिल हैं।

मिश्रा जी!!, आप जैसे छोटे भाई और निकट मित्र को आपकी सफल सेवानिवृत्ति पर हम अपनी शुभकामनायें और बधाई प्रेषित करते है। आशा है, न केवल आप, भाभी जी के साथ अपितु हम जैसे  सेवा निवृत्त साथियों के साथ भी रिटायर्ड जीवन का आनंद सांझा करेंगे।  इन्ही कामनाओं के साथ एक बार पुनः सेवानिवृत्ति पर हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई। 

विजय सहगल  

शनिवार, 27 अप्रैल 2024

Sitaram Bagh Temple, Hyderabad

 

"Sitaram Bagh Temple, Hyderabad"










The darshan of Sitaram Bagh temple in Hyderabad on 3 March 2024 was a very special and rare darshan. This huge ancient temple built by Seth Puranmal Ganeriwala in 1830 is spread over an area of about 25 acres and this temple has been given the status of a rare temple. Before writing about this 194 year old temple, I would like to express my heartfelt gratitude to my friend Mr. Ganesh Subramaniam, who, due to my wandering nature, inspired me to become a co-traveller to visit this temple. This temple, once located in Mangal Haat of Mehdipatnam area, which was the outskirts of Hyderabad, is today located in the middle of Hyderabad. As soon as we entered the dusty grounds, seeing a big entrance gate, it was not easy to guess that inside this boundary wall would be the oldest huge Rambagh temple of Hyderabad. After about two hundred yards of unpaved corridor, the main temple, with a very large entrance, attracted my attention. On the right and left sides of this entrance gate, 40-45 feet high, painted in yellow, red and green colors, an old corridor was built, in which the rooms might have been used as accommodation for the servants. A monitoring room was built above the gate, on both sides of which was made the shape of a roaring lion. Above this monitoring room, the beautiful semicircular shape of the temples in South Indian architectural style was giving completeness to the entrance.

In the construction of Sitaram Bagh Temple, South Indian architectural style along with Rajasthan, Mughal and European architectural styles are seen. As soon as you enter the temple gate, the statue of Lord Murgan was installed in a high tower right in the middle of a vast rectangular courtyard. After paying obeisance to Lord Ganesha situated in this tower, as soon as we turned right, there was another entrance which opened into a huge courtyard. There were large halls on both the right and left sides of the temple, whose architectural style was the roof built on white round pillars of European architecture, which was built on the lines of Connaught Place in Delhi. Due to the top and bottom of these pillars being painted with thin ocher color, Sanatani culture was visible. In these halls, chariots, drums and items used in local festivals were kept, which would have been used on special festivals. As soon as you enter this courtyard through another entrance, a square Yagya Shala in the form of Barhadari was built on a high platform built in South Indian architecture, on pillars made of sixteen carved stones. In front of the Yagya Shala, two temples of Lord Vishnu and Lord Ram, Lakshman and Mata Sita have been built, which are the main ancient temples of this courtyard. Since we were late for the morning Mangal Aarti, we decided to visit other religious places located in the courtyard.

In another courtyard, a temple built in European style dedicated to Lord Krishna was situated. As soon as we entered the temple through the verandah built around the courtyard, we entered the temple through some stairs. The entrance gate of the temple and the windows above it had English style windows and doors made of wood, indicating that this temple was built by Seth Puran Mal Ganeriwala or his descendants. In accordance with South Indian tradition, a brass flag pole was installed in the courtyard of the main Krishna temple. All around the verandah and the courtyard of the temple, the floor of the courtyard was made with square stones of black and white marble. In our childhood, we first saw this type of floor in the Murli Manohar Temple located near our house at Jhansi, which even today is spreading the same beauty of its beautiful appearance and smooth floor like this temple. In another courtyard, a temple of Ram Doot, Pawan Sut Hanuman was also established around which a corridor was built like other temples. After darshan and circumambulation of the temple, we proceeded towards the main Vishnu temple.

By now the preparations for Aarti were complete. In the presence of 8-10 visitors, Mangal Aarti was organized by Satna's (M.P.) priest Mr. Mishra and after the Aarti, Prasad of pure, satvik and tasty salted rice prevalent in the temples of South India was distributed among the devotees. After seeing Lord Vishnu for some time, we proceeded to visit the outer area of the temple. When we stepped inside a hallway to enter a haunted and desolate courtyard full of bushes and shrubs, it seemed as if no one had ever come here for years. Completely deserted. As soon as we moved forward to enter this scary courtyard, the guard from behind warned in Hyderabadi Hindi, "Sir, do not go inside this! Big snakes live here. I wished that the guard would come with us to encourage me." Perhaps he would support me in walking inside this ghost bungalow, but his terrified face forced me to turn back after taking a few steps.

On coming out, we saw two beautiful water steps i.e. stepwells, whose architecture indicated that once upon a time, huge amount of water must have enhanced the beauty of these stepwells. But due to lack of maintenance, dirty water and cracks at many places were clearly telling the stories of their ruined glory. It was told that there are five such stepwells here. The path to another stepwell outside the temple courtyard was no less than the abode of ruined ghosts. But I and my companion Ganesh, with courage and caution, moved forward inside. Mountains of garbage, filth and useless items were seen all around. Ripe tamarind was scattered in thousands. After taking some photos, we turned back from that stepwell also. After returning some distance, I met a gentleman Shri Krishna Yadav in an ancient arena. Shri Yadav ji is the director and master of this ancient Akhara, under whose tutelage Telangana state level wrestlers have been given. This ancient Akhara, once patronized by the owner of the temple, must have attracted young men towards wrestling in its glory days, but today it is in a dilapidated condition due to lack of funds.

Many houses have also been built outside the temple, in which the descendants of the old sevadars are probably living and due to legal disputes, they are probably suffering from lack of maintenance. A wedding garden was also seen at one place, which might have been used as an additional source of income for the maintenance of this huge courtyard. A cow shed is run by the temple management outside the temple. Both of us also earned virtuous benefits by feeding grass to the cows.

There is no doubt that the descendants of Seth Puran Mal Ganeriwala are trying to keep the heritage of their ancestors alive in this very ancient temple located in Hyderabad, but there is a great need for the state government to provide funds for the maintenance and renovation of this temple. Arrangements should be made. To restore the old divinity and grandeur of this temple, there is a need for a joint effort not only by the politicians, dignitaries and influential persons, but also by the citizens of Hyderabad, tourists and religious followers to further establish their life in this temple along with their families. Attendance should be maintained so that the Brahmatva and divinity of this temple is established again.

Vijay Sahgal

 

सीताराम बाग मंदिर, हैदराबाद

 

"सीताराम बाग मंदिर, हैदराबाद" 










3 मार्च 2024 को हैदराबाद स्थित सीताराम बाग मंदिर के दर्शन बड़े ही बिलक्षण और दुर्लभ दर्शन थे। 1830  मे सेठ पूरनमल गनेरीवाला द्वारा निर्मित यह विशाल पुरातन  मंदिर लगभग 25 एकड़ क्षेत्र मे फैला है और इस मंदिर को  एक दुर्लभ मंदिर का दर्जा दिया गया हैं। 194 वर्ष पुराने इस मंदिर के बारे मे लिखने के पूर्व अपने मित्र श्री गणेश सुब्रमनियम को हृदय से धन्यवाद दूँगा जिनहोने मुझे मेरी घुम्मकड़ी प्रवृत्ति के कारण इस मंदिर के दर्शन हेतु सहयात्री बन, प्रेरित किया। कभी हैदराबाद का बाहरी क्षेत्र रहे मेहदीपट्टनम क्षेत्र के मंगल हाट मे स्थित यह मंदिर आज हैदराबाद के बीच मे स्थित हो गया है। धूलभरे मैदान मे प्रवेश करते ही एक बड़े प्रवेश द्वार को देख यह अनुमान लगाना सहज नहीं था कि इस चारदीवारी के अंदर हैदराबाद का प्राचीनतम विशाल रामबाग मंदिर होगा। लगभग दो सौ गज के कच्चे गलियारे के बाद मुख्य मंदिर, एक अति विशाल प्रवेश द्वार ने मेरा ध्यानकर्षण किया। 40-45 फुट ऊंचे पीले, लाल और हरे रंग से रंगे इस प्रवेश द्वार के दायें और बाएँ पुराना कॉरीडोर बनाया गया था जिनमे बने कमरे शायद सेवादारों के लिए आवास का उपयोग हेतु  होता होगा। द्वार के उपर एक एक निगरानी कक्ष बनाया गया था, जिसके दोनों ओर दहाड़ते सिंह की आकृति बनाई गयी थी। इस निगरानी कक्ष के उपर दक्षिण भारतीय वास्तु शैली मे मंदिरों की सुंदर अर्धवृत्ताकार आकृति प्रवेश द्वार को  सम्पूर्णता प्रदान कर रही थी।

सीताराम बाग मंदिर के निर्माण मे  दक्षिण भारतीय वास्तु शैली के साथ राजस्थान, मुगल और यूरोपियन वास्तु शैली के दर्शन होते हैं। मंदिर के द्वार मे प्रवेश करते ही एक विशार आयताकार प्रांगण के ठीक बीचों-बीच  भगवान मुर्गन की प्रतिमा एक ऊंचे  टावर मे स्थापित की गयी थी। इस टावर मे स्थित भगवान गणेश को प्रणाम कर जैसे ही हम लोग दाहिने मुड़े सामने एक अन्य प्रवेश द्वार जो एक विशाल आँगन मे खुलता था। मंदिर के दायें बाएँ दोनों ओर बड़े-बड़े दालान बने हुए थे जिनकी वास्तु शैली यूरोपियन वास्तु के सफ़ेद गोल गोल स्तंभों पर बनी छत्त थी जिनको  दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज़ पर बनाया गया था। इन खंभों के उपर और नीचे कम मोटाई के  गेरुई रंग से रंगा होने के कारण सनातनी सांस्कृति के दर्शन हो रहे थे।  इन दालानों मे रथ, ढ़ोल और स्थानीय पर्वों मे उपयोग होने वाली वस्तुएँ रक्खी थी, जिनका उपयोग विशेष पर्वों पर किया जाता होगा। इस प्रांगण के एक अन्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही दक्षिण भारतीय वास्तु मे निर्मित एक ऊंचे चबूतरे पर, सोलह नक्काशी दार पत्थरों से निर्मित स्तंभों पर बारहदरी रूपी वर्गाकार यज्ञ शाला निर्मित की गयी थी। यज्ञ शाला के सामने ही भगवान विष्णु और भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता के दो मंदिर बनाये गये है जो इस प्रांगण के मुख्य प्राचीन मंदिर हैं। अभी प्रातः की मंगल आरती मे देर होने के कारण हमने प्रांगण मे स्थित अन्य धार्मिक स्थलों को देखने का निश्चय किया।

एक अन्य प्रांगण मे भगवान कृष्ण को समर्पित यूरोपियन शैली मे बना मंदिर स्थित था। आँगन के चारों ओर बने बरामदे से होकर जैसे ही मंदिर मे प्रवेश किया तो कुछ सीढ़ियों से होकर मंदिर मे प्रवेश किया। मंदिर का प्रवेश द्वार और उसके उपर बने झरोखों मे लकड़ी से बने अँग्रेजी शैली के खिड़की और दरवाजे इस बात का संकेत दे रहे थे कि इस मंदिर का निर्माण सेठ पूरन मल गनेरीवाला या उनके वंशजों ने बनवाया हो। मुख्य कृष्ण मंदिर के आँगन मे दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुरूप पीतल का धव्ज स्तम्भ लगा हुआ था। चारों ओर बरामदे और मंदिर के आँगन मे काले सफ़ेद मार्वल के वर्गाकार पत्थरों से आँगन का फर्श बनाया गया था। बचपन मे इस तरह का फर्श सर्वप्रथम हमने अपने घर के पास स्थित मुरली मनोहर मंदिर मे देखे थे, जो आज भी अपने सुंदर रूप और चिकनी फ्लोर की छट्टा इस मंदिर की तरह ही विखेर रहे हैं। एक अन्य प्रांगण मे राम दूत, पवन सुत हनुमान का मंदिर भी स्थापित किया  गया था जिसके चारों ओर भी अन्य मंदिरों की तरह कॉरीडोर बनाया गया था। मंदिर के दर्शन और परिक्रमा पश्चात हम लोगो ने मुख्य विष्णु मंदिर की ओर प्रस्थान किया।

अब तक आरती की तैयारियां पूर्ण हो चुकी थी। 8-10 दर्शनार्थियों की उपस्थिती मे मंगल आरती का उपक्रम सतना के पुजारी श्री मिश्रा द्वारा संपादित किया गया और आरती के उपरांत दक्षिण भारत के मंदिरों मे प्रचलित शुद्ध, सात्विक और स्वादिष्ट नमकीन चावल का प्रसाद वितरण हम भक्त गणों के बीच किया गया। कुछ देर भगवान विष्णु के दर्शन उपरांत हम लोगो ने मंदिर के बाहरी क्षेत्र का भ्रमण करने हेतु आगे बढ़े। एक दालान के अंदर जब हमने एक उजड़े, झाड़ और झंकार से भरे भूतहा और उजड़े आँगन मे प्रवेश के लिए कदम बढ़ाया, ऐसा प्रतीत होता था मानों सालों से यहाँ कभी कोई नहीं आया। एक दम निर्जन बीरान। जैसे ही इस डरावने आँगन मे प्रवेश के लिए आगे बढ़े, पीछे से गार्ड ने हैदराबादी हिन्दी मे चेतावनी दी, "साहब जी इस के अंदर न जाएँ! यहाँ बड़े बड़े साँपा रहते हैं। मेरी इच्छा तो थी कि गार्ड हमारे साथ मेरी हौंसला अफजाई कर शायद इस भूत-बंगले के अंदर चलने मे मेरा साथ देगा लेकिन उसके भयक्रांत चेहरे ने मुझे  कुछ कदम बढ्ने के बाद, बापस आने को मजबूर कर दिया।

बाहर आने पर दो सुंदर पानी की बाव अर्थात बावड़ी देखी, जिनका वास्तु इस बात को इंगित कर रहा था कि एक समय विशाल जलराशि इन बावड़ियों के सौन्दर्य को बढ़ता होगा। लेकिन रख रखाव के अभाव मे गंदा पानी और और जगह जगह टूट फूट इनके उजड़े वैभव की कहानियाँ स्पष्ट रूप से ब्याँ कर रही थी। ऐसा बताया गया कि इस तरह की यहाँ पाँच बावड़ियाँ हैं। मंदिर प्रांगण के बाहर एक अन्य बावड़ी का रास्ता भी उजड़े भूत प्रेत के निवास से कम न था। लेकिन मैं और मेरे साथी गणेश,  हिम्मत के साथ सावधानी पूर्वक अंदर आगे बढ़े। चारों तरफ  कचरा, गंदगी और अनुपयोगी वस्तुओं के पहाड़ देखने को मिले। पकी हुई इमली हजारों की संख्या मे बिखरी पड़ी थी। कुछ फोटो लेने के बाद हम लोग उस बावड़ी से भी बापस हो लिए। कुछ दूर बापस आने पर एक प्राचीन अखाड़े मे एक सज्जन श्री कृष्ण यादव से मुलाक़ात हुई। श्री यादव जी ही इस प्राचीन अखाड़े के संचालक और उस्ताद हैं जिनकी शागिर्दगी मे तेलंगाना राज्य स्तरीय पहलवान दिये हैं। कभी मंदिर के स्वामी द्वारा आश्रित ये प्राचीन आखाडा अपने वैभव काल मे नवयुवकों को पहलवानी की ओर आकर्षित करता होगा आज धनाभाव के कारण जीर्ण-शीर्ण हालत मे है।

मंदिर के बाहर भी अनेकों आवास बने हैं जिनमे शायद पुराने सेवादारों के वंशज निवास कर रहे हों और कानूनी विवादों के चलते शायद रखरखाव का अभाव झेल रहे हैं। एक जगह पर शादी गार्डन भी देखने को मिला जिससे इस विशाल प्रांगड़ के रखरखाव हेतु एक अतिरिक्त आमदनी के स्त्रोत के रूप मे उपयोग होता  होगा। मंदिर के बाहर, मंदिर प्रबंधन द्वारा एक गौ शाला संचालित की जाती हैं। हम दोनों ने भी गायों को घास खिला कर पुण्य लाभ अर्जित किया।

इसमे कोई शक नहीं कि हैदराबाद स्थित इस अति प्राचीन मंदिर को सेठ पूरन मल गनेरीवाला के वंशज अपने पूर्वजों की इस धरोहर को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन इस बात की महति आवश्यकता हैं कि राज्य शासन को  इस मंदिर  के रखरखाव और नवीकरण हेतु धन की व्यवस्था करनी चाहिए। इस मंदिर की पुरानी दिव्यता और भव्यता को बापसी हेतु यहाँ के राजनीतिज्ञों, गणमान लोगो और प्रभाव शाली व्यक्तियों द्वारा संयुक्त प्रयास की दरकार तो है ही, साथ ही हैदराबाद के नागरिकों, पर्यटकों, धर्मावलम्बियों को भी आगे आकार इस मंदिर  मे अपने परिवार के साथ अपनी हाजरी  लगाना चाहिए ताकि फिर से इस मंदिर का ब्रह्मत्व और दिव्यता स्थापित हो।               

विजय सहगल