"धन
संपत्ति का कोंग्रेसी पुनर्वितरण एवं विरासत टैक्स"
इन दिनों भारतीय राजनीति के चुनावी वर्ष
2024 मे हर व्यक्ति की संपत्ति का एक्सरे कर संपत्ति,
धन और स्वर्णाभूषणों का पुनर्वितरण जैसी क्रांतकारी कदम और "विरासत टैक्स" जैसे मुद्दों की चर्चा ज़ोरों पर है। 7 अप्रैल 2024 को कॉंग्रेस
के युवा नेता राहुल गांधी ने हैदराबाद की एक चुनावी रैली मे देश की संपत्ति और धन
के पुनर्वितरण हेतु अपनी नीति और नियत को स्पष्ट करते हुए कहा कि:-
"सत्ता मे आने पर "हम देश का एक्सरे कर देंगे,
दूध का दूध, पानी का पानी हो
जायेगा", "अल्पसंख्यकों को
पता चल जायेगा की इस देश मे उनकी भागीदारी कितनी है"। "उसके बाद हम देश
का फ़ाइनेंशियल और इंस्टीट्यूटशनल सर्वे करेंगे"। "ये पता लगायेंगे कि
हिंदुस्तान का धन किसके हाथ मे है"। "इस ऐतिहासिक कदम के बाद के बाद हम
क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे"!! "जो आपका हक बनता है वो आपके लिए आपको
देने का काम करेंगे।"
राहुल गांधी के इस ब्यान के बाद विवाद तो
होना ही था। क्या एक वर्ग के लोगो से संपत्ति को छीन कर दूसरे वर्ग को देने की
नीति से समाज मे अशांति, उग्रता और
विक्षोभ नहीं फैलायेगी? खुद प्रधान
मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं मे कॉंग्रेस की इस "माओवादी"
सोच के विरुद्ध देश के लोगो को आगाह किया। मोदी ने राहुल गांधी की एक्सरे वाली इस सोच को विस्तृत
व्याख्या करते हुए कॉंग्रेस द्वारा लोगों के घर,
कृषि भूमि, बैंक जमा,
स्वर्ण आभूषणों के साथ महिलाओं के स्त्रीधन और मंगल सूत्र तक पर काँग्रेस की गिद्ध
दृष्टि के विरुद्ध सचेत किया। क्या कॉंग्रेस की इस तरह की सोच से देश के आर्थिक
विकास के दृष्टिकोण को हतोत्साहित करने को बल नहीं मिलेगा?
क्या राहुल गांधी की इस तरह की माओबादी सोच से लोगों मे अकर्मण्यता,
निष्क्रियता, आलसी और अलालीपन की मानसिकता को बढ़ावा नहीं मिलेगा?
एक ओर, जब बगैर कुछ किये ही लोगो को दूसरों की
संपत्ति मे हिस्सा मिलेगा तो वे क्यों कर नौकरी,
सेवा, व्यापार,
कृषि या औध्योगिक उत्पादन के लिये श्रम करेंगे,
वहीं दूसरी ओर उध्योग्पति और पूंजीपति क्यों कर व्यापार या उध्योग मे अपने धन और
पूंजी को निवेशित करेंगे? जबकि उनकी उनकी
आय का एक बहुत बड़ा हिस्सा संपत्ति के पुनर्वितरण या टैक्स के रूप मे सरकार ले लेगी?
इस मार्क्सवादी और लेनिन वादी सोच ने ही रूस सहित सोवियत संघ और विश्व का बड़ा अहित
किया।
भाजपा ने कॉंग्रेस पर विरासत टैक्स
की संकल्पना को अपना चुनावी एजेंडा
के तौर पर अपनाने का आरोप लगाया हैं। चुनावी
फायदे के लिये विरासत टैक्स का ये सगूफ़ा
इसलिये छोड़ा गया क्योंकि कॉंग्रेस और गांधी परिवार के 82 वर्षीय कुलगुरु और
इंडियन ओवरसीज कॉंग्रेस के चेयरमेन,
सेम पित्रोदा (सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा) ने 26 अप्रैल को अमेरिका मे विरासत
टैक्स की तर्ज़ पर ये विचार प्रकट किये कि अमेरिका सहित अन्य देशों मे लगने वाले विरासत
टैक्स को भारत मे भी लागू किया जाय,
जिससे सरकार को एक बड़ी धनराशि टैक्स के रूप मे प्राप्त होगी,
पर कॉंग्रेस ने तुरंत ही सेम पित्रोदा के "विरासत टैक्स" वाले विचार से अपने आपको अलग करते हुए,
विरासत टैक्स को सेम पित्रोदा का अपना निजी विचार बतला कर,
उनसे अपना पल्ला झाड़ते हुए बचने का प्रयास किया।
विरासत टैक्स के तहत आप या आपके पूर्वजों द्वारा जो
संपत्ति या धन आपको प्राप्त हुआ या जो जायदाद या धन आप अपनी संतानों के लिये छोड़
जायेंगे उसमे 45% ही आपको या आपकी
संतानों को प्राप्त होगा शेष 55% धन विरासत
टैक्स के रूप मे आप से छीन लिया जायेगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं मे ये भी आरोप लगाया कि 1953 से जारी इस विरासत टैक्स को तत्कालीन कॉंग्रेस
सरकार के प्रधानमंत्री स्व॰ राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल मे सन 1985 मे
सिर्फ इसलिये समाप्त किया था क्योंकि वे
अपनी माँ स्व॰ श्रीमती इन्दिरा गांधी से विरासत मे मिले धन, संपत्ति और स्वर्ण आभूषणों पर लगने वाले टैक्स को
देने से बचना चाहते थे!! उन दिनों विरासत
टैक्स की दर 85% थी। सवाल उठना लाज़मी हैं
कि श्री राजीव गांधी द्वारा 1985 मे इस विरासत टैक्स को बापस लेने के पूर्व 1953
से जिन लोगों से विरासत टैक्स की बसूली की गयी क्या उनके साथ अन्याय नहीं हुआ?
और जब 1985 मे इस विरासत टैक्स को समाप्त किया जा चुका है तो आज काँग्रेस के
राजर्षि सेम पित्रोदा से प्रभावित राहुल
गांधी, संपत्ति के पुनर्वितरण को अपने चुनावी
घोषणा पत्र 2024 मे इस टैक्स को शुरू करने
क्या आवश्यकता हो आयी?
ये बात सही है कि संपत्ति और धन के
पुनर्वितरण नीति का काँग्रेस के घोषणा पत्र मे उल्लेख नहीं हैं इसिलिये काँग्रेस
अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे, जय राम रमेश
सहित सारे काँग्रेस दल के नेता मोदी को झूठा बताते हुए चुनौती दे रहे कि वह बताएं
कि काँग्रेस के घोषणा पत्र मे इसका उल्लेख कहाँ किया गया हैं?
लेकिन ये बात भी उतनी ही सही हैं कि काँग्रेस के लोग बताएं कि मोदी ने कब 15 लाख
रुपए देश के हर नागरिक को देने का वादा कब किया?
या भाजपा द्वारा 400 सीटें लाने पर संविधान बदलने,
आरक्षण समाप्त करने का कहाँ उल्लेख किया?
कहावत हैं कि प्यार और युद्ध मे सब जायज हैं!! भाजपा को संविधान मे परिवर्तन करना
होता तो अपने पिछले दो कार्यकाल मे भी ऐसा कर सकती थी?
और जो संविधान संशोधन हुए वे सारे निजी
स्वार्थ से परे देश हित मे लिये गये थे
जिनमे अन्य दलों का सहयोग था फिर वो चाहे धारा 370 का समाप्त करना हो या लोक सभा
और विधान सभाओं मे आरक्षण को पुनः दस वर्ष के बढ़ाना,
वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लागू करना,
या लेह लद्दाख को केंद्र शासित करने की घोषणा जैसी मुख्य मुद्दे शामिल है। इसके
विपरीत कॉंग्रेस ने कर्नाटक मे पिछड़े वर्ग,
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के आरक्षण कोटे मे 4 प्रतिशत की कटौती कर ये
कोटा मुस्लिमों के लिये आरक्षित कर धर्म
के आधार पर आरक्षण की शुरुआत की है जो संविधान की मूल भावना के विपरीत है। अब देश
के नागरिकों को समझना होगा कि देश के संविधान के स्वरूप और भावना से कौन खिलवाड़ कर
रहा है?
जिस तरह कॉंग्रेस ने विरासत टैक्स पर सेम
पित्रोडा के विचार से अपने आपको अलग कर लिया,
क्या उसी तरह काँग्रेस मे हिम्मत हैं कि राहुल गांधी के संपत्ति और धन को
अल्पसंख्यकों को वितरित करने के विचार से अपने आपको अलग कर सके?
कदापि नहीं!! क्योंकि राहुल गांधी की घोषणा ही कॉंग्रेस मे सर्वोच्च घोषणा होती है,
जिसे कोई चुनौती नहीं दे सकता!! जो राहुल गांधी कहेंगे वही कॉंग्रेस के लिये
ब्रह्मवाक्य होगा! फिर उसका उल्लेख कॉंग्रेस के घोषणा पत्र मे हो या न हो!! सवाल
ये उठता है कि यदि कॉंग्रेस सत्ता मे आयी तब राहुल गांधी की सोच और विचार के अनुसार एक वर्ग
से एकत्रित संपत्ति और धन के बंटवारे का आधार क्या होगा?
महात्मा गांधी की मनसा के विरुद्ध जिस
कॉंग्रेस ने अपने स्वार्थ के लिये देश का बंटवारा स्वीकार कर लिया उससे एकत्रित धन
के न्याय पूर्वक बँटवारे की उम्मीद कैसे
की जा सकती है? जो एक विचारणीय प्रश्न है।
विजय सहगल