शनिवार, 27 अप्रैल 2024

सीताराम बाग मंदिर, हैदराबाद

 

"सीताराम बाग मंदिर, हैदराबाद" 










3 मार्च 2024 को हैदराबाद स्थित सीताराम बाग मंदिर के दर्शन बड़े ही बिलक्षण और दुर्लभ दर्शन थे। 1830  मे सेठ पूरनमल गनेरीवाला द्वारा निर्मित यह विशाल पुरातन  मंदिर लगभग 25 एकड़ क्षेत्र मे फैला है और इस मंदिर को  एक दुर्लभ मंदिर का दर्जा दिया गया हैं। 194 वर्ष पुराने इस मंदिर के बारे मे लिखने के पूर्व अपने मित्र श्री गणेश सुब्रमनियम को हृदय से धन्यवाद दूँगा जिनहोने मुझे मेरी घुम्मकड़ी प्रवृत्ति के कारण इस मंदिर के दर्शन हेतु सहयात्री बन, प्रेरित किया। कभी हैदराबाद का बाहरी क्षेत्र रहे मेहदीपट्टनम क्षेत्र के मंगल हाट मे स्थित यह मंदिर आज हैदराबाद के बीच मे स्थित हो गया है। धूलभरे मैदान मे प्रवेश करते ही एक बड़े प्रवेश द्वार को देख यह अनुमान लगाना सहज नहीं था कि इस चारदीवारी के अंदर हैदराबाद का प्राचीनतम विशाल रामबाग मंदिर होगा। लगभग दो सौ गज के कच्चे गलियारे के बाद मुख्य मंदिर, एक अति विशाल प्रवेश द्वार ने मेरा ध्यानकर्षण किया। 40-45 फुट ऊंचे पीले, लाल और हरे रंग से रंगे इस प्रवेश द्वार के दायें और बाएँ पुराना कॉरीडोर बनाया गया था जिनमे बने कमरे शायद सेवादारों के लिए आवास का उपयोग हेतु  होता होगा। द्वार के उपर एक एक निगरानी कक्ष बनाया गया था, जिसके दोनों ओर दहाड़ते सिंह की आकृति बनाई गयी थी। इस निगरानी कक्ष के उपर दक्षिण भारतीय वास्तु शैली मे मंदिरों की सुंदर अर्धवृत्ताकार आकृति प्रवेश द्वार को  सम्पूर्णता प्रदान कर रही थी।

सीताराम बाग मंदिर के निर्माण मे  दक्षिण भारतीय वास्तु शैली के साथ राजस्थान, मुगल और यूरोपियन वास्तु शैली के दर्शन होते हैं। मंदिर के द्वार मे प्रवेश करते ही एक विशार आयताकार प्रांगण के ठीक बीचों-बीच  भगवान मुर्गन की प्रतिमा एक ऊंचे  टावर मे स्थापित की गयी थी। इस टावर मे स्थित भगवान गणेश को प्रणाम कर जैसे ही हम लोग दाहिने मुड़े सामने एक अन्य प्रवेश द्वार जो एक विशाल आँगन मे खुलता था। मंदिर के दायें बाएँ दोनों ओर बड़े-बड़े दालान बने हुए थे जिनकी वास्तु शैली यूरोपियन वास्तु के सफ़ेद गोल गोल स्तंभों पर बनी छत्त थी जिनको  दिल्ली के कनॉट प्लेस की तर्ज़ पर बनाया गया था। इन खंभों के उपर और नीचे कम मोटाई के  गेरुई रंग से रंगा होने के कारण सनातनी सांस्कृति के दर्शन हो रहे थे।  इन दालानों मे रथ, ढ़ोल और स्थानीय पर्वों मे उपयोग होने वाली वस्तुएँ रक्खी थी, जिनका उपयोग विशेष पर्वों पर किया जाता होगा। इस प्रांगण के एक अन्य प्रवेश द्वार से प्रवेश करते ही दक्षिण भारतीय वास्तु मे निर्मित एक ऊंचे चबूतरे पर, सोलह नक्काशी दार पत्थरों से निर्मित स्तंभों पर बारहदरी रूपी वर्गाकार यज्ञ शाला निर्मित की गयी थी। यज्ञ शाला के सामने ही भगवान विष्णु और भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता के दो मंदिर बनाये गये है जो इस प्रांगण के मुख्य प्राचीन मंदिर हैं। अभी प्रातः की मंगल आरती मे देर होने के कारण हमने प्रांगण मे स्थित अन्य धार्मिक स्थलों को देखने का निश्चय किया।

एक अन्य प्रांगण मे भगवान कृष्ण को समर्पित यूरोपियन शैली मे बना मंदिर स्थित था। आँगन के चारों ओर बने बरामदे से होकर जैसे ही मंदिर मे प्रवेश किया तो कुछ सीढ़ियों से होकर मंदिर मे प्रवेश किया। मंदिर का प्रवेश द्वार और उसके उपर बने झरोखों मे लकड़ी से बने अँग्रेजी शैली के खिड़की और दरवाजे इस बात का संकेत दे रहे थे कि इस मंदिर का निर्माण सेठ पूरन मल गनेरीवाला या उनके वंशजों ने बनवाया हो। मुख्य कृष्ण मंदिर के आँगन मे दक्षिण भारतीय परंपरा के अनुरूप पीतल का धव्ज स्तम्भ लगा हुआ था। चारों ओर बरामदे और मंदिर के आँगन मे काले सफ़ेद मार्वल के वर्गाकार पत्थरों से आँगन का फर्श बनाया गया था। बचपन मे इस तरह का फर्श सर्वप्रथम हमने अपने घर के पास स्थित मुरली मनोहर मंदिर मे देखे थे, जो आज भी अपने सुंदर रूप और चिकनी फ्लोर की छट्टा इस मंदिर की तरह ही विखेर रहे हैं। एक अन्य प्रांगण मे राम दूत, पवन सुत हनुमान का मंदिर भी स्थापित किया  गया था जिसके चारों ओर भी अन्य मंदिरों की तरह कॉरीडोर बनाया गया था। मंदिर के दर्शन और परिक्रमा पश्चात हम लोगो ने मुख्य विष्णु मंदिर की ओर प्रस्थान किया।

अब तक आरती की तैयारियां पूर्ण हो चुकी थी। 8-10 दर्शनार्थियों की उपस्थिती मे मंगल आरती का उपक्रम सतना के पुजारी श्री मिश्रा द्वारा संपादित किया गया और आरती के उपरांत दक्षिण भारत के मंदिरों मे प्रचलित शुद्ध, सात्विक और स्वादिष्ट नमकीन चावल का प्रसाद वितरण हम भक्त गणों के बीच किया गया। कुछ देर भगवान विष्णु के दर्शन उपरांत हम लोगो ने मंदिर के बाहरी क्षेत्र का भ्रमण करने हेतु आगे बढ़े। एक दालान के अंदर जब हमने एक उजड़े, झाड़ और झंकार से भरे भूतहा और उजड़े आँगन मे प्रवेश के लिए कदम बढ़ाया, ऐसा प्रतीत होता था मानों सालों से यहाँ कभी कोई नहीं आया। एक दम निर्जन बीरान। जैसे ही इस डरावने आँगन मे प्रवेश के लिए आगे बढ़े, पीछे से गार्ड ने हैदराबादी हिन्दी मे चेतावनी दी, "साहब जी इस के अंदर न जाएँ! यहाँ बड़े बड़े साँपा रहते हैं। मेरी इच्छा तो थी कि गार्ड हमारे साथ मेरी हौंसला अफजाई कर शायद इस भूत-बंगले के अंदर चलने मे मेरा साथ देगा लेकिन उसके भयक्रांत चेहरे ने मुझे  कुछ कदम बढ्ने के बाद, बापस आने को मजबूर कर दिया।

बाहर आने पर दो सुंदर पानी की बाव अर्थात बावड़ी देखी, जिनका वास्तु इस बात को इंगित कर रहा था कि एक समय विशाल जलराशि इन बावड़ियों के सौन्दर्य को बढ़ता होगा। लेकिन रख रखाव के अभाव मे गंदा पानी और और जगह जगह टूट फूट इनके उजड़े वैभव की कहानियाँ स्पष्ट रूप से ब्याँ कर रही थी। ऐसा बताया गया कि इस तरह की यहाँ पाँच बावड़ियाँ हैं। मंदिर प्रांगण के बाहर एक अन्य बावड़ी का रास्ता भी उजड़े भूत प्रेत के निवास से कम न था। लेकिन मैं और मेरे साथी गणेश,  हिम्मत के साथ सावधानी पूर्वक अंदर आगे बढ़े। चारों तरफ  कचरा, गंदगी और अनुपयोगी वस्तुओं के पहाड़ देखने को मिले। पकी हुई इमली हजारों की संख्या मे बिखरी पड़ी थी। कुछ फोटो लेने के बाद हम लोग उस बावड़ी से भी बापस हो लिए। कुछ दूर बापस आने पर एक प्राचीन अखाड़े मे एक सज्जन श्री कृष्ण यादव से मुलाक़ात हुई। श्री यादव जी ही इस प्राचीन अखाड़े के संचालक और उस्ताद हैं जिनकी शागिर्दगी मे तेलंगाना राज्य स्तरीय पहलवान दिये हैं। कभी मंदिर के स्वामी द्वारा आश्रित ये प्राचीन आखाडा अपने वैभव काल मे नवयुवकों को पहलवानी की ओर आकर्षित करता होगा आज धनाभाव के कारण जीर्ण-शीर्ण हालत मे है।

मंदिर के बाहर भी अनेकों आवास बने हैं जिनमे शायद पुराने सेवादारों के वंशज निवास कर रहे हों और कानूनी विवादों के चलते शायद रखरखाव का अभाव झेल रहे हैं। एक जगह पर शादी गार्डन भी देखने को मिला जिससे इस विशाल प्रांगड़ के रखरखाव हेतु एक अतिरिक्त आमदनी के स्त्रोत के रूप मे उपयोग होता  होगा। मंदिर के बाहर, मंदिर प्रबंधन द्वारा एक गौ शाला संचालित की जाती हैं। हम दोनों ने भी गायों को घास खिला कर पुण्य लाभ अर्जित किया।

इसमे कोई शक नहीं कि हैदराबाद स्थित इस अति प्राचीन मंदिर को सेठ पूरन मल गनेरीवाला के वंशज अपने पूर्वजों की इस धरोहर को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन इस बात की महति आवश्यकता हैं कि राज्य शासन को  इस मंदिर  के रखरखाव और नवीकरण हेतु धन की व्यवस्था करनी चाहिए। इस मंदिर की पुरानी दिव्यता और भव्यता को बापसी हेतु यहाँ के राजनीतिज्ञों, गणमान लोगो और प्रभाव शाली व्यक्तियों द्वारा संयुक्त प्रयास की दरकार तो है ही, साथ ही हैदराबाद के नागरिकों, पर्यटकों, धर्मावलम्बियों को भी आगे आकार इस मंदिर  मे अपने परिवार के साथ अपनी हाजरी  लगाना चाहिए ताकि फिर से इस मंदिर का ब्रह्मत्व और दिव्यता स्थापित हो।               

विजय सहगल


     

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