शुक्रवार, 3 मई 2024

भाग्यनगर गऊ सेवा सदन (गौशाला), हैदराबाद

 

"भाग्यनगर गऊ सेवा सदन (गौशाला), हैदराबाद"









18 जनवरी 2024 को हमारे जॉयफुल जंक्शन, हैदराबाद के कुछ साथी पिछले कई दिनों  से गऊ शाला जाने के कार्यक्रम बना रहे थे। कार्यक्रम के स्थान और प्रयोजन से एकदम अनिभिज्ञ मैने इसलिये अपने  मित्रों के साथ चलने  की सहमति दे दी क्योंकि मुझे उनके उपर अटूट विश्वास था कि वे जिस भी स्थान और आशय हेतु जाएंगे सार्थक ही होगा। हमारे लक्ष्य तक जाने का माध्यम बने रथ के सारथी श्री गणेश सुब्रह्मण्यम जो अपनी रथ रूपी नयी नवेली मारुति बोलेनों मे हम चार  सह यात्रियों सहित यात्रा करा  रहे थे। गऊशाला की पिछले दिनों आपस मे चर्चा तो हो रही थी पर मै गऊ शाला को कोई क्षेत्र विशेष समझ रहा था, जिसकी कल्पना मै कोई आश्रम या धार्मिक स्थल के रूप मे कर रहा था। लगभग 40-45 मिनिट की यात्रा पश्चात जब हम एक छह   मंज़िला भवन के सामने उतरे, तब तक भी मेरे दिमाग मे उद्देश्य और स्थान अस्पष्ट था। बहु मंज़िला भवन को देख मुझे लगा शायद किसी गणमान्य व्यक्ति या साधू, महात्मा जो  इस भवन मे ठहरे होंगे उनसे मिलने के उद्देश्य से जा रहे हैं। भवन के प्रवेश द्वार के बाहर कुछ फल, सब्जी और हरी भाजी की दुकान को देख लगा शायद योगाश्रम हो,  योगासन पश्चात लोग  सलाद, फल आदि ग्रहण करते होंगे। गाड़ी पार्किंग के पश्चात मै अपनी मित्र मंडली जिसमे हैदराबाद के मेरे अभिन्नतम मित्र नारायण राव जी, सत्य प्रकाश जी, जंग बहादुर और गणेश सुब्रह्मण्यम के साथ अनमने मन से मै भी, पीछे पीछे चलने लगा। बहुमंज़िले भवन मे प्रवेश करते ही गायों, बैलों और बछड़ो के रंभाने की आवाज सुनाई दी, ऐसा लगा शायद गाँव के ग्वाले गऊओं  के झुंड को हार मे चरनोई की जमीन पर उन्हे चराने के लिये गाँव की पगडंडी से होकर जा रहे हों।

मुझे देख कर हैरानी हुई की 30-40 गायों के समूह को पक्के बाढ़े मे रक्खा गया था। चार मंज़िला भवन की हर मंजिल पर ऐसे 6-7 बाढ़े थे। हर मंजिल पर बाढ़ों के सामने खुला बरामदा था जहां घास के बड़े बड़े ढेर लगे हुए थे। मैंने जीवन मे पहली वार इस तरह की छह मंज़िला  गऊ शाला देखी थी। सहसा विश्वास नहीं हुआ कि महानगरों की इस आपा-धापी और  भागम-भाग वाली ज़िंदगी मे गायों के लिये भी लोग इतनी श्रद्धा, भक्ति और सम्मान  के साथ बगैर किसी प्रतिलाभ की अपेक्षा और  निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं? गाँव, कस्बों और मध्यम श्रेणी के शहरों मे तो पूरे देश मे सनातन धर्मी हर व्यक्ति परिवार मे गऊ सेवा के ऐसी सांस्कृति और संस्कार हर जगह देखने को मिल जाते है पर महानगरों की इस सांस्कृति को देख मन आश्चर्य से प्रसन्न हो उठा।

अब तो गऊ शाला की इस परियोजना के वारे मे अधिक जानकारी की जिज्ञासा से मैंने गहराई और गौर से कदम-कदम की सूचना एकत्रित की। पहली ही मंजिल पर एक बड़ी तराजू देख ज्ञात हुआ कि हैदराबाद के अनेक हिन्दू धर्मावलम्बी अपने बच्चों, या अपने परिवार के सदस्यों के जन्मदिन पर गऊ शाला मे आकार घास, गुड, रोटी या अन्य फल फ्रूट आदि अपनी श्रद्धा और क्षमता अनुसार दान कर गायों को चारा आदि खिलाते हैं। लाइनेस क्लब और ऐसी अनेक संस्थाएं भी इस गौशाला मे अपने अपने तरीके से योगदान करती हैं।  कुछ लोग अपने बजन के बराबर चारा, आटा चुन्नी आदि दान करते हैं। घास चारे, गुड, आटे की व्यवस्था गऊ शाला प्रबंधन द्वारा की जाती है। बैसे तो हर दिन आने वाले सैकड़ों श्रद्धालु और गऊ सेवक यहाँ के हर काम मे हिस्सा बँटाते हैं लेकिन गौशाला प्रबंधन ने भी 8-10 स्थायी सेवक गायों की सेवा के लिये रक्खे है जो नित्य हर बाढ़े की सफाई, धुलाई करते हैं। गायों के गोबर की सफाई हेतु गायों को एक बाढ़े से दूसरे बाढ़े मे स्थानांतरित किया जाता हैं। इस दौरान गौमूत्र और गोबर को विधि पूर्वक शुद्ध और सात्विक ढंग से एकत्रित कर खाद और औषधि के रूप मे भी इस्तेमाल किया जाता हैं। गौशाला मे गायों की देखभाल के लिये एक पशुचिकित्सक भी नियुक्त है जो समय समय पर गायों की देखभाल और उनके स्वास्थ्य का परीक्षण करता हैं। एक गुजरती सज्जन जो हर रोज दस  हजार रोटियाँ बनवा कर गौशाला मे आते है और तीनों मंजिलों पर गौधन को रोटी खिला कर गऊ सेवा करते हैं। उन सज्जन ने छोटे छोटे पैकेटों मे पैक की गयी ताज़ा रोटी के पैकेटों को हमारे मित्रों के माध्यम से भी आगे   गायों को खिलाने के लिये दिया। हमारे मित्रों ने भी अपनी श्रद्धा अनुसार गायों के चारे और गुड़ को क्र्य कर गायों को खिलाया। गौशाला मे ये आवश्यक नहीं था कि आप घास या चारे को क्रय कर ही खिलाएँ। हर मंजिल पर दान दाताओं द्वारा रक्खे बड़े-बड़े घास के गट्ठर से भी आप घास लेकर, गायों को खिला सकते है।

दूसरी मंजिल पर गायों के सुंदर छोटे-छोटे बछड़ों को बाढ़े के बाहर खुला छोड़ा गया था ताकि वे नरम-नरम घास को खा सके और बाढ़े मे गायों के झुंड से सुरक्षित रह सके। लोगो को दुलार इन सुंदर बछड़ों की ओर सहज ही चला जाता था और श्रद्धालु उन्हे  प्यार और दुलार कर अपने हाथों से घास, रोटी या गुड खिला रहे थे। लगभग एक हजार गायों की व्यवस्था इस गौशाला मे की गयी हैं। प्रथम मंजिल पर गौशाला के साथ ही कार्यालय और महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण भी किया गया हैं वाकि दो अन्य मंजिलों पर भी गायों को बाढ़े मे रक्खा गया था। वही उपर की पाँचवी और छटी मंजिल पर शादी-विवाह या अन्य सामाजिक और  धार्मिक कार्यक्रमों हेतु बड़े बड़े हाल भी बनवाएँ गायें हैं जहां पर निर्धारित शुल्क के साथ लोग विवाह आदि के कार्यक्रम संपादित करते हुए गऊ शाला को अप्रत्यक्ष रूप से शुल्क के रूप रख रखाव हेतु आर्थिक सहयोग  करते है। उपर की मंजिलों पर जाने के दो लिफ्ट की व्यवस्था भी हैं। एक जो अच्छी बात थी पहली मंजिल से छठी मंजिल तक जाने आने के लिये सीढ़ियों की जगह काफी चौड़ा ढलान वाला  रैम्प बनाया गया था ताकि गायों को दूसरी और तीसरी मंजिल तक लाने, लेजाने मे परेशानी न हो।  हम लोगो ने गऊ शाला की सारी मंजिलों पर भ्रमण कर गौशाला का निरीक्षण किया। ऊपरी मंजिल से कुछ दूरी पर हुसैन सागर झील के विहंगम दृश्य भी दिखलाई देता हैं। कुछ बाढ़ों के बाहर दान दाताओं द्वारा कल्याण के लिये बनवाएँ गये इस निर्माण की निश्चित ही प्रशंसा   की जानी चाहिये। इस महानगर मे इस तरह की गऊ शाला के लिये इस धार्मिक और सामाजिक परियोजना की इस पहल की जितनी भी प्रशंसा की जाये कम हैं। सनातन धर्म के पवित्र ग्रंथ पुराणों की ऐसी मान्यता हैं कि गायों मे 33 कोटि देवता निवास करते हैं। हिन्दू धर्म की मान्यता अनुसार जहां गायों की सेवा से सुख, शांति और संपन्नता रूपी ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त होता है।  यदि आप भी  हैदराबाद भ्रमण पर जाये तो हुसैन सागर झील से चंद कदमों की दूरी  पर लोअर टैंक रोड पर स्थित इस गऊ शाला का भ्रमण अवश्य करें और गायों को चारा, घास रोटी आदि खिलाकर धर्मलाभ अर्जित करें।

विजय सहगल

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

इतने सुंदर शब्दो में यात्रा वर्णन एवं ज्ञान वर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद sir..

बेनामी ने कहा…

Very interesting a multi-storey shelter for cows. It is 54 years since I left Hyderabad. Some 5 years back I again visited the city for an assignment. Reached there by morning flight and returned home by the evening flight. A look at Banjara Hills confirmed the total devastation of the beautiful hill and its forest.
Ranjit Singh
Noida