"मित्र
अश्वनी मिश्रा की सेवानिवृत्ति"
आज 30 अप्रैल 2024 को हमारे छोटे भाई तुल्य और
अभिन्न मित्र अश्वनी मिश्रा जी की सेवानिवृत्ति है। 39 साल 4 माह की निष्कलंक सेवा के बाद बैंक से रिटायर होना भी
किसी उपलब्धि से कम नहीं हैं। 1984 मे स्थानांतरण से ग्वालियर पहुँचने पर मिश्रा जी का नाम सुन तो रक्खा था,
क्योंकि मिश्रा जी नजदीक ही मुरैना शाखा मे पदस्थ थे,
लेकिन उनसे मुलाक़ात और निकटता 1992 मे मेरी पदस्थपना पोरसा जिला मुरैना शाखा के
दौरान हुई। चूंकि पोरसा एक नॉन-फ़ैमिली स्टेशन था तो हर शनिवार और सोमवार या कभी
बीच मे 45 किमी दूर मुरैना आना जाना बना रहता था। मुख्यालय मुरैना होने के कारण कई
बार बैंक के काम से आना जाना जो लगा रहता,
जहां उनसे मुरैना शाखा मे लगातार संपर्क बना रहा।
मिश्रा जी कद-काठी मे बेशक हैं तो,
छोटे, पर उनकी मेधा,
स्वाभिमान और बुद्धिकौशल की तुलना आसमान की ऊंचाई से करें तो अतिसन्योक्ति न
होगी। हमे याद हैं मिश्रा जी ने उन दिनों बैंक की परीक्षा सीएएआईआईबी के दोनों भाग
पास कर लिए थे इसलिए वे विशेष सहायक से अधिकारी वर्ग की प्रोन्नति के लिये पात्र
हो गये थे और वरिष्ठता सूची मे प्रथम नंबर पर थे। बैंक स्टाफ सीएएआईआईबी परीक्षा
के महत्व से भली-भाँति परिचित होंगे कि ये
एक काफी महत्वपूर्ण लेकिन कठिन परीक्षा है,
जिसे एक स्वतंत्र संस्था अखिल भारतीय स्तर पर हर छह माह मे आयोजित करती हैं। इस
परीक्षा के दोनों भाग पास करने पर जहां तीन वेतन वृद्धियाँ तो मिलती ही हैं साथ मे
राज्य स्तरीय वरिष्ठता सूची मे भी तीन साल की वरीयता भी वरिष्ठता सूची मिलती हैं। इस परीक्षा से ने केवल आर्थिक लाभ
अपितु बैंक की प्रोन्नति मे भी फायदा मिलता हैं। लेकिन दुर्भाग्य कि उन दिनों मिश्रा जी की योग्यता,
ज्ञान और बुद्धि कौशल बैंक प्रबंधन और
यूनियन की ओच्छी राजनीति और संकुचित और
षड्यंत्रकारी मानसिकता के चलते तत्कालीन
ओरिएंटल बैंक प्रादेशिक प्रबंधन, भोपाल और राज्य स्तरीय
बैंक अधिकारी यूनियन,
जिनसे बैंक के स्टाफ के हितों के लिये उनके पक्ष मे खड़े होने और उनके
हितों की रक्षा की अपेक्षा थी, षड्यंत्र पूर्वक
मिश्रा जी की वरिष्ठता को नज़रअंदाज़ कर अपने चहेते,
एक ऐसे भ्रष्ट और बेईमान कर्मचारी की प्रोन्नति कराने मे सफल हुए जिसको कालांतर
मे भ्रष्टाचार और बैंक फ़्रौड
मे संलिप्त होने के कारण बैंक की सेवाओं से बर्खास्त किया गया। इस अन्याय
से मिश्रा जी थोड़े निराश तो जरूर हुए पर हौसले,
श्री अटल बिहारी बाजपेयी की कविता की तरह बुलंद रहे कि:-
हार
नहीं मानूँगा, रार नहीं ठनूँगा,
काल
के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ। गीत नया गाता हूँ॥
यहाँ ये बताना आवश्यक है मिश्रा जी भी कविता
लेखन मे पारंगत हैं। बैंक की सेवा के पूर्व भी मिश्रा जी का विध्यार्थी जीवन भी संघर्ष
और कठिनाइयों भरा रहा। उच्च शिक्षा के लिये अपने गाँव से बाहर यूपी के कालपी मे
अध्यवसाय हेतु जाना पड़ा, जहां एक आश्रम
के एक कमरे मे रहकर इंटर्मीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। एक कमरे मे पारीक्षा की
तैयारी करना कोई अजूबा नहीं था, अनूठापन तो था,
पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ, रोज
उदरपोषण हेतु लकड़ी के चूल्हे पर खाना
पकाना, जो समान्यतः हम-आप जैसे छात्रों को विध्यार्थि जीवन मे नहीं करना पड़ा होगा।
सन 2000 से 2010 के दौरान मुझे मिश्रा जी के
साथ तत्कालीन ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शाखा नया बाज़ार,
थाटीपुर और डबरा शाखा मे कार्य करने का मौका मिला। डबरा शाखा मे मिश्रा जी को बैंक
के कार्य मे उनकी लगन, समर्पण,
निष्ठा और ईमानदारी से कार्य करने का मैं हमेशा
कायल रहा। सामान्यतः वे अपने कार्य को बड़ी मेहनत और परिश्रम से संपादित करते लेकिन
डबरा शाखा मे प्रबन्धक के रूप पदस्थपना के दौरान मैंने उनको हमेशा अपने समकक्ष
साथी के रूप सम्मान दिया। कदाचित ही कभी उनके रहते,
मैने बैंक के दिन-प्रतिदिन के कार्यो मे
हिस्सेदारी की हो इस कारण मै, सदैव बैंक के व्यव्यसाय
के विकास मे ज्यादा से ज्यादा समय दे सका।
मुझे अच्छी तरह याद है उन दिनों बैंको मे ट्रैक्टर ऋण मे डीलर से मिलने वाले कमीशन के कारण ट्रैक्टर ऋण, काफी संख्या मे गैर निष्पादन कारी हो रहे थे,
जिसके कारण बैंक के ऋण खाते काफी संख्या मे खराब हो रहे थे। इसको नियंत्रित करने के लिये हम लोगो ने उन
दिनों डबरा क्षेत्र मे धान और गेहूं के व्यापारियों को वेयर हाउस रसीदों के
विरुद्ध सर्वाधिक ऋण वितरण किया था। कृषि अधोसंरचना के विकास हेतु वेयर हाउस के
निर्माण मे भी हमारे बैंक शाखा की हिस्सेदारी अच्छी-ख़ासी रही जिसमे हितग्राही को
लाखों रुपए का अनुदान भी शामिल था। काजल की कोठरी मे रहने के बावजूद कदाचित,
एक पैसे के आर्थिक कदाचार का, कभी कोई वृतांत
हमारी शाखा के बारे मे कभी देखा या सुना
गया हो। यही कारण है जब मैंने मिश्रा जी की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट मे उन्हे शत
प्रतिशत नंबर दिये तो प्रादेशिक कार्यालय के एक अधिकारी ने इस पर सवाल खड़े किये?
मैंने उन्हे स्पष्ट रूप से कहा कि मिश्रा जी की निष्ठा और ईमानदारी के लिये
यदि सौ मे सौ नंबर की मजबूरी न होती तो
मैं उनको सौ से भी अधिक नंबर देता। मैं इन्हे अपने से ज्यादा योग्य,
बुद्धिमान, सच्चा,
ईमानदार और पवित्र मानता हूँ।
हम दोनों के बैंकिंग से परे बड़े घनिष्ठ
परवारिक संबंध भी रहे। इनके दोनों बेटे कार्तिकेय और ज्योतिर्मय से हमारे बच्चों
की प्रगाढता हम दोनों की आत्मीयता और निकटता से कम नहीं हैं। मिश्रा जी को याद हो
न हो पर हमे उनके परिवार, वीके गुप्ता जी
के परिवार और हमारे परिवार के साथ अंडमान
और निकोबार की यात्रा के सुखद, सुनहरी यादें अब
तक याद हैं। विशेषकर जोलीबॉय दीप से पोर्ट ब्लेयर की स्टीमर से बापसी के दौरान
घनघोर बारिश के बीच, मछलियों और डीजल इंजिन के धुएँ की बदबू के कारण एक को उल्टी करते देख,
दूसरे और दूसरे को उल्टी करते देखने के दौरान तीसरे को,
देखा देखि, जी घबड़ाने और उल्टी दर उल्टी करने वालों की लाइन लगने की घटना
तो भुलाए नहीं भूलती।
मुझे याद है कि एक खराब हाउसिंग लोन खाते को
रेगुलर कराने के लिये मिश्रा जी हमसे ज्यादा चिंतित और परेशान रहते थे जबकि उनका
उस ऋण से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं था। लेकिन एक भाई और अभिन्न मित्र
होने के चलते उन्होने हमेशा हमारी परेशानी या दुःखों मे अपनी सहभागिता प्रकट की।
हमे याद है जब हम दोनों की डबरा पदस्थपना हुई तो तत्कालीन ऋण अधिकारी श्री संतवानी
ने हम दोनों को न्यायालय के कर्मचारियों
से व्यक्तिगत ऋण खाते मे बसूली के दौरान एक बहुत ही अप्रिय अनुभव से गुजरने के कारण,
इन बैंक ऋण खातों मे बसूली की चुनौती दी
थी। उक्त ऋण खातों मे किश्तें न आने के कारण खाते,
गैर निष्पादन कारी हो गये थे। न्यायालय के कर्मचारियों द्वारा दिये गये किश्तों की
अदायगी के चैक जैसे ही बिना भुगतान के बापस आए,
हम लोगो ने सेक्शन 138 के तहत न्यायालय मे केस दायर कर दिये। माननीय न्यायाधीश को
इस बात की जानकारी हुई तो मज़ाक मे मुझ से सवाल किया,
उनकी ही अदालत मे उनके ही कर्मचारियों के
विरुद्ध मुकदमा!! मैंने कहा श्रीमान हम
लोग तो नौकर ठहरे, आप जो आदेश दें,
हमे तो उसकी पालना करनी है? उन्होने कर्मचारियों
को सख्त आदेश दिये कि बैंक ऋण जमा करें अन्यथा उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही
होगी। उक्त तीनों ऋण समझौते के आधार पर समाप्त हो गए। ऐसे डूबंत ऋण खातों मे मिश्रा जी ने बड़ी चतुराई से बैंक के खराब ऋण मे
बसूली की थी।
मेरा ये दृढ़ विश्वास है के बैंक के सतर्कता
विभाग मे पदस्थपना भी एक सम्मान का विषय है,
जो बैंक के विरले, कर्मठ,
मेहनती और ईमानदार अधिकारियों को ही प्राप्त होता है,
फिर वह चाहे ओरिएंटल बैंक हो या पंजाब नेशनल बैंक!! यही कारण हैं कि उनके मृद
व्यवहार के कारण उनके प्रशंसकों और मित्रों की एक लंबी सूची हैं जिसमे ग्वालियर,
मुरैना के अनेकों गणमान्य व्यक्ति शामिल हैं।
मिश्रा जी!!,
आप जैसे छोटे भाई और निकट मित्र को आपकी सफल सेवानिवृत्ति पर हम अपनी शुभकामनायें
और बधाई प्रेषित करते है। आशा है, न केवल आप,
भाभी जी के साथ अपितु हम जैसे सेवा
निवृत्त साथियों के साथ भी रिटायर्ड जीवन का आनंद सांझा करेंगे। इन्ही कामनाओं के साथ एक बार पुनः सेवानिवृत्ति
पर हार्दिक शुभकामनायें एवं बधाई।
विजय सहगल
8 टिप्पणियां:
well done Mama ji
हमारी तरफ़ से मिश्रा जी को सुभकामना
अनिल धवन
बहुत अच्छा लिखा आप लिखने में माहिर हैं
भाषा,शैली अत्यंत उत्तम है।आकर्षण है।साधुवाद।
बहुत अच्छा वर्णन
श्री मिश्रा जी को बधाई, सहगल सर फोटो मे सब सेलुलर जैल के सामने दिख रहे है
Bahut sunder. Mere priye mishra ji ka retirement' hone par bahut sari shubhkamnaye
I love him
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